स्वार्थ का फेर ✍🏻✍🏻✍🏻
जो प्राप्त है वही पर्याप्त है !
अन्यथा सबमे दुःख व्याप्त है
प्रतिशोध में है तू ज्वलनशील
अब रहा न संयम अरु ना शील
तुम भीतर से प्रतिदिन सूख रहे
ईर्ष्यालु मन सागर में डूब रहे
सबकुछ पाया पाकर खोया
खुदके लालच में...
अन्यथा सबमे दुःख व्याप्त है
प्रतिशोध में है तू ज्वलनशील
अब रहा न संयम अरु ना शील
तुम भीतर से प्रतिदिन सूख रहे
ईर्ष्यालु मन सागर में डूब रहे
सबकुछ पाया पाकर खोया
खुदके लालच में...