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घर की दीवार
मेरा कुछ अनोखा रिश्ता है , मेरी ही घर की दीवारों से । लाल ,हरी नीली सब तरह से रंगवाई है मैंने ही अपने गलियारों को । यहां बस जैसी मैं हूं वैसा ही इनसे मेरा रिश्ता है , नाही रंग रूप की दीवार है नाही समाज का दोगला पन । हर दीवार पर मेरी ही परछाई है , मेरे ख्वाबों की एक कश्ती बना रखी है मैंने । इन्होने मेरे साथ मेरी खुशियां देखी है , मेरे गम देखे है । कभी कभी मुझे निराशा होती है , कहती कुछ भी नहीं बस गुंगो की तरह सुनती रहती है । ज़िन्दगी की सीख क्या लू इनसे जो खुद ही कितना सहती है ।