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दिवाना "
इश्क़ मे आशिक को,बस सनम नज़र आता हैँ।
लाख हो कोई प्यारा कितना ही,कहा नज़रो को भाता हैँ।
भूल जाता हैँ जमाना सारा, उसी के गुण गाता हैँ।
जलक को उसकी एक, हज़ारो बहाने बनाता हैँ।
दुनिया हो जाती हैँ छोटी सारी, उसको सबसे ऊपर बड़ा बताता हैँ।
कर देता हैँ हर हद पार, सच्चा आशिक सब कुछ कर जाता हैँ।
उसको बसा लेता हैँ कतरा कतरा जिस्म मे, खुद उसपर मर जाता हैँ।
क्या करेगा हुस्न-सूरत, वो तोह बस रूह को चाहता हैँ।
वोह बेवकूफ़ साह दीवाना, दुनिया कि नज़रो मे पागल बन जाता हैँ।
कितना ही समझाओ, उसे नाह कुछ समझ आता हैँ।
डूब जाता हैँ चाहत के दरिया मे, नाह लौट आता हैँ।
कोई क्या समझ पाए मस्ताने के दिल कि, बस वोह खुद,या वोह खुदा उसे समझ पाता हैँ।



© मिक्की"