...

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"आज मां भारती मेरे घर आई"
आज माँ भारती मेरे घर आई
चरणों में मैने झट डुबकी लगाई
बोली देश का क्या हाल बना रखा है भाई
सोने की चिड़िया दी थी वो तो बेच ही खाई
लेकिन जो नन्ही नन्ही गुडिया दे रखी हैं
उन्हें न नोचो मत बनो कसाई

कहते ही उसकी आँखे लबलबाई
मेरी भी आँख भर आई बोला,मैं क्या कर सकता हूँ माई??
बोली,,अनशन कर,धरणा दे,मजबूर कर सरकार को,मिलोड को,कठोर कानून बनवा,याद कर जरा राखी बंधी कलाई ,जब एक बंदर दुशमन देश के लिये अनशन कर सकता है... एक दमे का मरीज नाटक कर धरना दे निर्भयता से मुख्यमंत्री बन सकता है,तो तू क्या बहन बेटियों के लिये नहीं लड सकता एक लडाई ..कहते ही माँ ने एक चपत लगाई
जरूर करूंगा..मेरे मुंह से अवाज आई,लेकिन जब देश की बात छेडी है माँ तूने,क्या मेरे कुछ प्रश्नों का जवाब देगी??
हाँ पूछ क्या पूछना चाहता है...
कुछ देर को चुप्पी छाई... माँ मुझे देखे मैं देखूं माई...
रोते रोते मैंने गुहार लगाई...
सुभाष कहाँ है माई?? .. तू क्यों न उसे बचा पाई?..और तो और उसे उसका सम्मान तक न दिला पाई!!!..मेरा दिल देता है दुहाई...मै कैसे लडु लडाई...कुछ तो बोल मेरी माई... कुछ तो बोल मेरी माई!!!!!

कही नही गया वो!!!ज्वाला भरी क्रोधित अवाज गुंजाई
तपा रही थी उसे,गुण और बढा रही थी उसके,
श्याम दाम दण्ड भेद नीती पढा रही थी उसे,
ज्वालामुखीयों से लड सके जो ऐसा सूरज बना रही थी उसे,
पहचाना नहीं तुम लोगों ने
भर दी है मैंने हिरा बेन की गोदी
खेल कर जिसमें बडा हुआ मोदी
सुभाष का ही वो अवतार है..कुछ बात समझ मे आई
कहते ही माँ ने उडान लगाई
मै भी सो गया इतरा कर
सुबह से शुरू करनी है लडाई
आज माँ भारती मेरे घर आई