...

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बेज़ती
दूसरों की भीड़ में
बेज़ती करके लेते सब मज़ा।
कभी खुद का भी
अनादर करके तो देखो।
कटाक्ष खुद पर भी
तो छोड़ के देखो।

चलते फिरते मारते तुम
व्यंग यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ।
कभी खुद का भी
मज़ाक बना के तो देखो।

फूल जो काँटो में खिला हो,
उसे तो बस निहारने में ही भलाई है।
यूँही बेवजह उस फूल की
कोमलता को न ललकारो।
उँगलियाँ छिलवा के भी तो देखो।

दुसरो के घाव पर
नमक तो छिडक देते हो,
कभी खुद पर भी
ताना कसके तो देखो।
© Kunba_The Hellish Vision Show
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