...

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फ़िर जीना सीख रहे हैं।
तालीम हाँसिल करके भी
इल्म अपना झूठा ही रहा
बारिशों में भीग कर भी
ज़हन अपना सूखा ही रहा

पलटते पलटते पन्नों को
न जाने क्या ढूँढ़ते रहे
घिसते घिसते जूतों को
न जाने कहाँ बिखरते रहे

अब देख रहे हैं दुनिया को
और नए तजुर्बे ले रहे हैं
इस बार मुक़म्मल होने को
हम फिर से जीना सीख रहे हैं।

© Tanha Musafir