एक शाम
कुछ पुराने यारों की आज टोली मिली थी,
बात फिर क्या थी, यादों की खुली तिजोरी थी,
सबने अपने अपने किस्सों से महफ़िल सजाई
हर चेहरे पर मुश्काने थी छाई.
लिए प्याला ज़ाम का महफ़िल सजी
आशियां आज मयख़ाना थी बनी,
निढाल से शरीर हुआ था
मज़ाल क्या थी जो प्याला झलक जाता.
सुनी ये कहानी हमने भी थी
ये...
बात फिर क्या थी, यादों की खुली तिजोरी थी,
सबने अपने अपने किस्सों से महफ़िल सजाई
हर चेहरे पर मुश्काने थी छाई.
लिए प्याला ज़ाम का महफ़िल सजी
आशियां आज मयख़ाना थी बनी,
निढाल से शरीर हुआ था
मज़ाल क्या थी जो प्याला झलक जाता.
सुनी ये कहानी हमने भी थी
ये...