...

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एक शाम
कुछ पुराने यारों की आज टोली मिली थी,
बात फिर क्या थी, यादों की खुली तिजोरी थी,
सबने अपने अपने किस्सों से महफ़िल सजाई
हर चेहरे पर मुश्काने थी छाई.
लिए प्याला ज़ाम का महफ़िल सजी
आशियां आज मयख़ाना थी बनी,
निढाल से शरीर हुआ था
मज़ाल क्या थी जो प्याला झलक जाता.

सुनी ये कहानी हमने भी थी
ये प्याला हर दर्द-ऐ-दवा भी थी,
टूटे अरमानों की उम्मीदें भी थी
अश्क़ों की कल की कहानियां भी थी.
चूमें थे लबों को हमारी
छेड़ा ताल हाल-ऐ-दिल का
बेवज़ह तन बैठा मज़लूम ये सर
लगी होड़ अश्क़ों की बह जाने की.

बता तू मुझकों ये शाम क्या गज़ब हुई
हर खुशियाँ भी बेज़ान हुई,
एक अर्श लगे इस शाम बनाने को
हर एक यार को संग लाने को.
हलक से जो तुझको लबों को लगाया
दर्द-ऐ-उंस जो फिर सताया,
भूले थे जो किस्से थे, ग़मों के
हर दर्द से तूने फ़िर हमकों रु-ब-रु कराया.