36 views
बस_यूँही
स्वप्न मुझसे अक़्सर पूछते हैं
तेरे यह क़दम अबलक से क्यूँ भाग रहे हैं,
कल तक थे जो साथ काफ़िले में
लोग कहाँ वो संग आज रहे हैं,
विलुप्त हुए जुगनू भी जलके
नयन क्यूँ दिये से जाग रहे हैं,
जिस पतंग को पंख मिल गए
अब उसे परिंदे कहाँ याद रहे हैं,
ज़िन्दगी.. इक़ बचपन ही था पिंजरे से बाहर
वैसे बेफ़िक्र कहाँ अब हम आज़ाद रहे हैं!!
© बस_यूँही
तेरे यह क़दम अबलक से क्यूँ भाग रहे हैं,
कल तक थे जो साथ काफ़िले में
लोग कहाँ वो संग आज रहे हैं,
विलुप्त हुए जुगनू भी जलके
नयन क्यूँ दिये से जाग रहे हैं,
जिस पतंग को पंख मिल गए
अब उसे परिंदे कहाँ याद रहे हैं,
ज़िन्दगी.. इक़ बचपन ही था पिंजरे से बाहर
वैसे बेफ़िक्र कहाँ अब हम आज़ाद रहे हैं!!
© बस_यूँही
Related Stories
32 Likes
11
Comments
32 Likes
11
Comments