...

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तुम बिन
*तुम बिन जीवन*

जब सोचना ही मुश्किल है,
बताओ तो कैसे लिखा जाए?
सोचने पर भी घबरा जाती हूं,
तो तुम बिन जिंदगी कैसे जिया जाए?

अगर मैं सांस तो तुम हवा हो,
मैं चांद तो तुम रात हो,
मैं जिस घड़ी ठहर जाना चाहती हूं,
मेरी जिंदगी में तुम वो खुशनसीब पल हो,

मैं समंदर,तुम किनारे की वो रेत हो,
जिसको हर वक्त खुद में समाना चाहती हूं,
मैं कलम,और तुम वो प्यारा सा अल्फाज़ हो,
जिसे मैं बार बार लिखना चाहती हूं,

तुम बिन जीवन का कभी ख्याल ही नहीं आया,
तुमसे दूर होने के ख्वाब ने भी आंखों में आंसू है लाया,
तय कर लेती हूं जब मंजिल कोई तुम्हारे बगैर,
तो पैर को भी पीछे हटते हुए पाया,

मैं बटोही, तुम पेड़ की वो छाया हो,
मैं पंछी तो तुम मेरे पंख हो,
मैं भीगना चाहती हूं जो बारिश में,
उस बारिश के हर बूंद में तुम हो,

पता नहीं तुम्हारे साथ इस रिश्ते को क्या नाम दूं,
हर रिश्ते कम लगते हैं, जब बात तुम्हारी आती है,
सोचती हूं तुम्हे खुदा का मुझे दिया हुआ एक प्यारा सा तोहफा समझ लूं,
जिस तोहफा को हर वक्त दिल में छुपा कर रखना चाहती हूं ।