...

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मंजर
हार कर भी आज न जाने क्यों जीत का एहसास हो रहा है,
कैद पिंजरे से एक खुले आसमान का आगास हो रहा है।
बन्द हो गए रास्ते सारे फिर भी न जाने क्यों एक धुंधला सा रास्ता दिख रहा है।
भरोसा टूटा आज फिर भी न जाने शिकायते खत्म लग रही है,
लग रहा है जैसे कुछ नया शुरू हो रहा है।