...

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गम क्या करना
गम क्या करना उनके बिछड़ने का,
हवा का तो काम है छू के गुजरने का।।

वो बदल गए तो हैरत क्या इसमे,
मौसम का तो काम है बदलने का।।

मंज़िल तो ख़ुद राह में आगे बढ़ गयी,
अब कोई मतलब नहीं मुसाफ़िर तेरे ठहरने का।।

सारे वादे सारी कसमें सब हम पर हैं लाज़िम,
तेरा तो हक़ है इनसे मुकरने का।।

पाँव थके हैं, साँसे उखड़ रहीं,
यही सही वक़्त है सफ़र पर निकलने का।।

जो भी हमें अब देखता है तो कहता है,
वाह!! क्या अंदाज़ है टूट के बिखरने का।।
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