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अपराध
#अपराध
मन मौन व्रत कर अपराध करता है,
किस भांति देखो आघात करता है ,
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है,
पिरो के मोतियों सा मुझको,
कांच के टुकड़ो सा बिखेर मुझको,
सर्वव्याप्त गुणगान करता है,
मन मौन व्रत कर अपराध करता है,
किस भांति देखो आघात करता है ,
कहने को हमसफ़र है मेरा वो,
गैरों से आँखे चार करता है,
एक दिन खुद टूट बिखरेगा,
झूठे वादे हज़ार करता है,
मन मौन व्रत कर अपराध करता है,
किस भांति देखो आघात करता है ,
© Ambuj Pathak