नारी- एक बदलाव का प्रतीक
सपने तो देखे थे मैंने भी कहीं सारे,
लेकिन आज कहीं सवाल लिए बैठी हूं;
एक जमाने में यह समाज जोधाबाई,
रानी लक्ष्मीबाई, सत्यवती
आदि स्त्रियों की प्रशंसा किया करता था,
और आज यही जमाना नारियों को
एक खिलौना समझ बैठा है,
क्या यह वही जमाना है?
यूं तो नारियों को दुर्गा सरस्वती
अन्नपूर्णा का रूप माना जाता है,
कहां जाता है नारी तू नारायणी,
और आज यही जमाना बात-बात पर नारियों को;
बतलाने लग गया उसकी सीमाएं
क्या यह वही जमाना है ?
यूं तो एक जमाने में योद्धाओं की
पहचान स्त्रियों से की जाती थी,
जैसे गंगापुत्र भीष्मा, कुंती पुत्र
अर्जुन, देवकी...
लेकिन आज कहीं सवाल लिए बैठी हूं;
एक जमाने में यह समाज जोधाबाई,
रानी लक्ष्मीबाई, सत्यवती
आदि स्त्रियों की प्रशंसा किया करता था,
और आज यही जमाना नारियों को
एक खिलौना समझ बैठा है,
क्या यह वही जमाना है?
यूं तो नारियों को दुर्गा सरस्वती
अन्नपूर्णा का रूप माना जाता है,
कहां जाता है नारी तू नारायणी,
और आज यही जमाना बात-बात पर नारियों को;
बतलाने लग गया उसकी सीमाएं
क्या यह वही जमाना है ?
यूं तो एक जमाने में योद्धाओं की
पहचान स्त्रियों से की जाती थी,
जैसे गंगापुत्र भीष्मा, कुंती पुत्र
अर्जुन, देवकी...