...

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मौसम-ए-तन्हाई में नई-पुरानी पीढ़ी की अंगड़ाई
बदलते हुए रिश्तों की ख़ामोशी क्या लिखूं
रिश्तों में रिश्तों की बढ़ती उदासी क्या लिखूं
निगाहों में हाल-ए-हालात को ऐसे समेटे हुए है
फ़ैसलों में फासलों की बढ़ती आँधी क्या लिखूं

रिश्तों में रिश्तों की मजबूरियां यूं झलक रही है
झूठी-मूठी उम्मीदों की ग़लत-फ़हमी क्या लिखूं
नए रिश्ते की आज़ादी या पुराने रिश्ते की जंजीरें
आज रिश्तों में रिश्तों की दग़ा-बाज़ी क्या लिखूं

बदलते मिज़ाजों का वो ज़िक्र चारों ओर मशहूर है
शिकायतों के हिसाब की ज़ख़्म-शुमारी क्या लिखूं
यूं ही नहीं रिश्तों में अय्यारी की निशानी दिखने लगी
मैं छोटी - बड़ी तानाकशी बातों की चिंगारी क्या लिखूं

आज फिर मतलबी रिश्तों की गर्माहट चर्चित हो गई
मुस्कुराते हुए चेहरों के पीछे की ख़ामोशी क्या लिखूं
मजबूरियों के ताने-बाने में ना जाने कितने रिश्ते है
मैं अब उन सुलगते हुए ज़ख़्मों की कहानी क्या लिखूं

गुज़रते वक़्त के साथ रिश्तों के हालात पढ़ने लगी हूं
इस इक तरफा रिश्ते-नाते की अफ़्सोसी क्या लिखूं
मौसम-ए-तन्हाई में नई-पुरानी पीढ़ी की बस अंगड़ाई है
मैं आजकल उम्र के सीमाओं की ख़ामोशी क्या लिखूं

© Ritu Yadav
@My_Word_My_Quotes