...

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रात और अंधेरा
मुझे याद है रात वो बचपन की
जब लाईट जाती थी अंधेरे के
डर से बिन नींद भी मै सो जाती
थी । चादर को ऐसे ओढ़ती की
इतनी सी भी सांस कही नही
रह जाती थी ............

उस वक्त अंधेरे से मै बहुत डरती थी
पर सोचा ना था । की अंधेरे से
डरने वाली ये मुस्कान एक दिन
अंधेरे मे खुद को महफूज पाएगी
ये अंधेरा ही उसकी किस्मत
बन जाएगा , लाईट नहीं जाती
अब फिर भी बुझा देती हूं...........
दिन भर खिलखिला कर बेवजह
की मुस्करा देती हूं, मै किस दर्द
से गुज़र रही हूं सिर्फ रात से कहा
करती हूं अंधेरे में खुद को समेट
लेती हूं, ।



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