सर से टोपी
हवा को हल्के में हमेशा लेना
भारी पड़ा
कभी आग ढ़ोती निकलती
कभी पानी भरा भारी पड़ा।
सूनेपन रहती है,तो भी
एक शोर रहती इसमें सदा।
हवाओ में एक जोर होती
झुका देती है पेड़ बड़े से बड़ा।
चढ़ा देती है मन ठंड,प्रसन्न
हो,पर्वत के सिर से टोपियां
बिगड़ी तो गरम,पिघला
गिरा देती सर से टोपिया।
© Nits
भारी पड़ा
कभी आग ढ़ोती निकलती
कभी पानी भरा भारी पड़ा।
सूनेपन रहती है,तो भी
एक शोर रहती इसमें सदा।
हवाओ में एक जोर होती
झुका देती है पेड़ बड़े से बड़ा।
चढ़ा देती है मन ठंड,प्रसन्न
हो,पर्वत के सिर से टोपियां
बिगड़ी तो गरम,पिघला
गिरा देती सर से टोपिया।
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