...

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हर कदम अलग ज़िन्दगी...
आंखों में
अपनापन,
जुबां पर
फुर्ती लिए
ये शहर,
आ दौड़ता है
तुम्हें अंदर तक
गले से लगाने को

असीम ऊर्जा है
गज़ब विश्वास भी
इस शहर को
महादेव की छत्रछाया,
नसीब है
माँ गंगा की
मिठास भी..

जन्म से मोक्ष तक
हर उम्र को
उतने ही स्नेह से
गले से लगाने का,
हर चुस्की चाय में
वक़्त से वक़्त चुरा
बैठ कर मुस्कुराने का
अदब शऊर है
इस शहर में

मैंने देखा है खुद को
भटकते
शहरों में,
बनारस में
खोकर भी लगा जैसे,
घर में हूँ,
हर कदम
अलग ज़िन्दगी
हर गली के
अपने रँग
फिर भी लगा कि जैसे
अपने शहर में हूँ


© राइटर.Mr Malik Ji.....✍