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कविता
कसक से ज्यादा
मेरे नज़दीक आइये
मुझे बेहद करीब से
आजमाइये
बंद कली नहीं हूँ
खिलता फूल हूँ
रसीला भँवरा बन कर
थोड़ा गुनगुनाइए
भाव कहाँ पल पाते है
केवल आवरण पर
धीरे से खोलिये
और सतहे सहलाइये
बेचैनी उगी है
आर्द्र तहों पर
थोड़ा गहराई मे भी
उतर आइये
रुकी हुई हूँ
मै बमुश्किल,
मुझ से कोई
राज ना छुपाइये
अर्थ को जल्दी नहीं है
लेकिन
लिखने में अब
देर मत लगाइये
© Ninad
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