...

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मेरा मन
मन कहि और था
पर मन मार के कहीं और जाना पड़ा

अपनी खुशियों की बलि चढ़ाके
आपको को खुशियां देना जो था

क्या हुआ जो दिल मेरा चकनाचूर हो गया
टूटे दिल पे मेरे रोने वाला मेरे अलावा कोई और ना था

एक एक पल उसके बिना मैंने बिरहा की ऐसे बिताई
जैसे जीते जी मुझे चिता पे हो लिटाई

क्या सोचा था क्या हुआ मेरे साथ
पिंजरे में तड़पते पँछी सी जिंदगी हो गयी मेरी आज

अब नही दिखते मेरी तकलीफ मेरी तड़प किसी और को
जब उनकी पारी थी रिश्तों की दुहाई देके मेरा सब कुछ मुझसे लूट लिया था

मेरी जिंदगी को मुझसे खोखले रीतिरिवाज
चार लोगों के लिये मुझसे छीन लिया था

मैं पूछती हूँ अब कहा गए वो चार लोग
जिसके लिये मुझे सबने मिल के हलाल किया था

मेरी जिंदगी सवारने की दुहाई देके
मेरी पूरी दुनिया ही तबाह कर दिया