...

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चल उठ, पंजा मार !
तेरी जिंदगी ना तो बर्बाद है,
ना तू है बेकार,
तू एक अनवरत, उन्मुक्त ऊर्जा है,
तुझको है किसकी दरकार?

पहचान खुद को, तू एक शेर है...
चल उठ, पंजा मार।
और बदल दे इस इंसानी जंगल का,
आकार और प्रकार।

कर सामना सब का,
चाहे मिलें दोस्त, ढोंगी या मक्कार,
अपनी जिंदगी का राजा है तू,
फड़का भुजाएं, कर वार।

जब तेरी कद्र नहीं इस दुनिया में,
बना डाल अपनी ख़ुद की दुनिया,
ना रख तू किसी से सरोकार।
अब चल उठ, पंजा मार।

तोड़ के सारे उलझनों, अड़चनों को,
कर दे कठिनाइयों को दरकिनार,
उठा अस्त्र मेहनत का,
और बन जा अपने नियति का लेखाकार।

याद रख... अरे याद रख!
उस सर्वशक्तिमान का अंश है तू,
वो साथ है तेरे हमेशा, तो आगे बढ़,
और कर ले अपने सारे सपने साकार।
अरे चल उठ, पंजा मार।

© AK