...

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बस एक वाह की आस में
क्यूँ हर शायर हर गायक हर इंसान लिखता है,
क्यूँ कोई कलम से कभी ना कभी कुछ खोया हुआ बुनता है,
क्यूँ गैरों को अपनों से छुपाये किस्से सुनाए जाते हैं,
सोचा है कभी कि क्यूँ ये कलम चलाई जाती है!!

क्यूँ राज़ पन्नों पर बेपर्दा हुआ करते हैं,
क्यूँ ख़ाब लाल स्याही से मिलकर अक्सर मरा करते हैं,
सोचा है कभी कि क्यूँ लोग लिखा करते हैं!

ना खोने का दर्द कम होता है ना बिछड़ा वापस लौट आता है,
ना वो लकीरें मिल पाती हैं ना वो फेरों का सफर शुरू हो पाता है,
फिर क्यूँ हर आशिक लिखने चला आता है,
सोचा है कभी क्यूँ हर अधूरी चाहत का किस्सा इन बेजान पन्नों पर उतारा जाता है!

शायद भीड़ में अपने से एक दर्द की तलाश में,
कुछ शिकायतों और कुछ तारीफों के लफ्जों को सुन सके उस दिल की याद में,
शायद बिन वादों के चल सके इस कहानी के सफर पे उस साथी की आस में,
लिखता है हर कोई बस एक आह से भरी वाह की आस में बस एक वाह की आस में!!