...

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स्कूल के वो दिन
स्कूल के वो पँखे जिन्हे हम मोड़ दिया करते थे,
याद आती है वो काँच की खिड़कियां जिन्हे हम तोड़ दिया करते थे....

वो पँखे के रेगुलेटर,
वो स्वीटच बोर्ड कै तार....

चार दोस्त थे हम जिगरी और,
बैक बेंच था अपना यार....
टीचर्स के चेयर पर,
वो चेइंग गम के थूक....

अक्सर खा लिया करते थे हम टिफ़िन,
जब भी हमें लगती थी भूख....

टॉयलेट कै बहाने वो पुरे स्कूल की सैर
वो दिन भी क्या दिन थे खैर....

वो बेंच की कील,
वो चॉक के बॉक्स....

और स्कूल लाइफ में ही होती है,
पूरी बदमाशी कै हर सौख....

वो होमवर्क ना करना फिर बहाने नये बनाना,
वो टीचर्स से रोज यूनिफार्म कै लिए दाँट खाना....

वो बोरिंग सब्जेक्ट्स से क्लास बंक करना,
फिर पनिशमेंट के तोर पर वो सारे असाइनमेंट पूरा करना....

वो बोम के शौर वो पटाखे की आवाज़,
वो दिवाली की मस्ती है भूले नहीं आज....

वो छठ की छुट्टी फिर ठेकुए का आना,
क्लास के बिच हम सब का मिल कर वो ठीकया खाना....

ईद के मोके पर वो सिवाईयाँ का आना,
क्रिस्चिमस का हम सब का वो मिलकर न्यू ईयर मनाना....

गुरुनानक जयंती के दिन वो टिफ़िन से आती घी वाले हलवे की ख़ुशबू,
और एक तरफ हमारे बदमाशी की बदबू....

कुछ अलग ही थी हमारे स्कूल की बात,
छाता रहते हुआ भी वो भीगति हुआ बरसात....

वो टीचर्स की छड़ी और वो डस्टर का खौफ,
वो बदमाशी की दुनिया वो हम बच्चो का मौज....

वो पढ़ाई का जसबा वो मेहनत का जूनून,
लड़ाईया ज्यादा ही होती थी क्यूंकि गरम था तब हमारा खून....

थे हम शरारती पर थे टीचर्स के खाश,
और बस हमारी ही चलती थी क्यूंकि हम थे पुरे स्कूल के बाप....

रह नहीं सकते थे हम अपने दोश्तो के बिन,
वो भी बहोत हसीन थे अपने स्कूल के वो दिन...

वो भी बहोत हसीन थे अपने स्कूल के वो दिन....
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