...

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मुक़म्मल नींद
एक उम्र बितानी थी तेरे साथ
वो शाम सुहानी रह गई
तेरी मेरी एक कहनीं अधूरी रह गई

कुछ यादे बनानी थी तेरे साथ
वो राते अनकही बन गई
तेरी मेरी दासता बेज़ुबानीं रह गई

वक़्त गुज़रते हम कहीं दूर
उम्र ढलने से पहले ही
वो रात अंधियारी ही रह गई

सोचा था जियेगे वो ख़्वाब जो देखें ही नहीं
क्या पता था तेरी नींद ही मुकम्मल हो गई

© 𝕤𝕙𝕒𝕤𝕙𝕨𝕒𝕥 𝔻𝕨𝕚𝕧𝕖𝕕𝕚