...

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मुझे मालूम है
न मैं फ़लक़ के लिए हूँ, न मैं ज़मी के लिए
कभी कहीं के लिए हूँ कभी कहीं के लिए

मैं ख़ुद को ढूंढ़ने भटकी हूँ दरबदर
लेकिन मिला ना कोई भी कामिल मुझे यकीं के लिए

तलाश करती रही मैं कहाँ करूँ सजदा
कोई भी दर न मिला पर मेरी जबीं के लिए

इसे सिवाय मुक़द्दर के और क्या कहिये
मुझे ही ढूंढ लिया सबने नुक़ताचीं के लिए

'सोनी' राज़ ये क्या है कि कोई महफ़िल हो सभी को लगता है तुम हो बनी वहीं के लिए

[जबीं- माथा , नुक़ताचीं - दोष निकालना ]

© सोनी