...

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ये आईना
ये आईना मुझे देखकर
कुछ यूँ मुस्कुराने लगा है।
हाँ कुछ तो हुआ है मुझे
क्यूँ आईना भाने लगा है।
मैं पढ़ती हूँ कोई नज़्म सी
और दिल गुनगुनाने लगा है।
उफ्फ! ये लेखन से मेरा प्यार
मुझे मुझसे ही चुराने लगा है।
कुछ भी हो ये प्यारा सा नशा
कुछ इस कदर ख़ुमारी पर है।
मैं लिखती हूँ कोई नज़्म और
वो पन्नों पर उभर आने लगा है।