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चुनौती भरे दिन
सब अच्छा ही चल रहा था,
एक दिन आई एक महामारी,
हिला दी दुनिया सारी।
हुआ बंद ऑफिस जाना,
कम होने लगा खाना पकाना।
जीने के लिए जरूरत थी
दिन की दो रोटी,
महसूस हुआ जिंदगी में
जाने कैसी किस्मत फूटी।
दोस्तो, सगे-संबंधियों से संपर्क कम हुआ,
जीवन जीना व्यर्थ हुआ।
रास्ते में चुनौतीयाँ तो बहुत थी,
मंजिल मेरा घर था।
कोसों दूर चलने के बाद भी
माथे पर सुकून था,
पहुंचने पर मिलेगी दो रोटी।
© Friends4ever
एक दिन आई एक महामारी,
हिला दी दुनिया सारी।
हुआ बंद ऑफिस जाना,
कम होने लगा खाना पकाना।
जीने के लिए जरूरत थी
दिन की दो रोटी,
महसूस हुआ जिंदगी में
जाने कैसी किस्मत फूटी।
दोस्तो, सगे-संबंधियों से संपर्क कम हुआ,
जीवन जीना व्यर्थ हुआ।
रास्ते में चुनौतीयाँ तो बहुत थी,
मंजिल मेरा घर था।
कोसों दूर चलने के बाद भी
माथे पर सुकून था,
पहुंचने पर मिलेगी दो रोटी।
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