*** मेरा इश्क़ ***
*** कविता ***
*** मेरा इश्क़ ***
" इश्क़ हैं की जनाब क्या बात करे हम,
उलफ़ते-ए-हयात नवाइस कर तो देते ,
आखिर किस दरिया में उतरते ऐसे में हम,
कुर्बत मुनासिब हो जो भी जैसा भी हो,
मैं तुम्हें इस मलाल से छोड़ तो नहीं देते,
बेशक इक तरफ़ा इश्क़ होने देते,
मैं दरिया था मुझे और समन्दर...
*** मेरा इश्क़ ***
" इश्क़ हैं की जनाब क्या बात करे हम,
उलफ़ते-ए-हयात नवाइस कर तो देते ,
आखिर किस दरिया में उतरते ऐसे में हम,
कुर्बत मुनासिब हो जो भी जैसा भी हो,
मैं तुम्हें इस मलाल से छोड़ तो नहीं देते,
बेशक इक तरफ़ा इश्क़ होने देते,
मैं दरिया था मुझे और समन्दर...