...

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पैमाने शहर भर के
#मयखाने
जब से हुयी है मेरी, आमद तेरे शहर में
रूठे हुये हैं मुझसे, मयख़ाने शहर भर के।

तेरे ग़म को जो मिटा दे, वो इक जाम ढूँढ़ता हूँ
टूटे हुये से दिखते हैं, पैमाने शहर भर के।

ना जाने क्या मसला है, इन्हें मुझसे क्या गिला है
मुझसे ख़फ़ा-ख़फ़ा से हैं, दीवाने शहर भर के।

क्या इनका खो गया है, क्या मैंने ले लिया है
क्या चाहते हैं मुझसे, अंजाने शहर भर के।

जिन्हें तेरी तमन्ना थी, तू ही आरज़ू थी जिनकी
मुझे रश्क़ में लगते हैं, परवाने शहर भर के।

क्या चाँद, क्या सितारे, कितने हंसीं नज़ारे
फ़ीके हैं बिन तुम्हारे, नज़राने शहर भर के।

जो रूह तक बसा है, तू भुला सकेगा "भूषण"
यही पूछते हैं मुझसे, अफ़साने शहर भर के।।