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मानसून
सूनी और सूखी धरती
तपती है हर पल
सबको अन्न धन देने वाली
हरी भरी लहराने वाली
आज विरह से तप रही
इस सूने मन को हरा करने
लो आ गया मानसून
सूखी धरती हर्षाई
मिलन से आंखें पानी से भर आई
मन मेरा सूना था
मिलने का था इंतज़ार
अब छोड़ कर मत जाना मुझे
बैठ कर करो ये इकरार
ओ मेरे प्यारे मानसून
© शून्य
तपती है हर पल
सबको अन्न धन देने वाली
हरी भरी लहराने वाली
आज विरह से तप रही
इस सूने मन को हरा करने
लो आ गया मानसून
सूखी धरती हर्षाई
मिलन से आंखें पानी से भर आई
मन मेरा सूना था
मिलने का था इंतज़ार
अब छोड़ कर मत जाना मुझे
बैठ कर करो ये इकरार
ओ मेरे प्यारे मानसून
© शून्य
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