एक थी
एक थी, जो खुशी में पागल यूँही झूमती रहती,
एक थी, जो अपने ही ख्यालों में मुस्कुराये बैठती,
एक थी, जो सोते-सोते सपनो की खाई में गिर जाती,
एक थी, जो इस ढ़ाई अक्षर की पहेली को सुलझाये बैठती,
एक थी, जो खुद से ज़्यादा उसे समझने लगी थी,
गुलाब के फूल की राह में उन काटों पर भी चलने लगी थी,
बिन बोले तारीफ़ करना भी सीख लिया...
एक थी, जो अपने ही ख्यालों में मुस्कुराये बैठती,
एक थी, जो सोते-सोते सपनो की खाई में गिर जाती,
एक थी, जो इस ढ़ाई अक्षर की पहेली को सुलझाये बैठती,
एक थी, जो खुद से ज़्यादा उसे समझने लगी थी,
गुलाब के फूल की राह में उन काटों पर भी चलने लगी थी,
बिन बोले तारीफ़ करना भी सीख लिया...