...

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इजहार- ए - मोहब्बत
क्या केहना आपसे,
भिन्न तो नहीं हो मुझसे,
होते भिन्न तो केहना पड़ता आपसे,
मगर वेसा कहां है।

फिर बोलना दिखाना क्या?
सिर्फ जताना काफी नहीं है क्या?
सिर्फ हमे पाता हो और हम ही समझे ये काफी नहीं?

"इजहार-ए-मोहब्बत" बयां करने की जरूरत कहां होती है,
जब मोहब्बत अपने आपसे होती है।

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