...

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स्वयं से अपरिचित

अनवरत भागता रहा अनंत छोर तक
भीड़ का हिस्सा स्वयं को कर लिया
लौटा हूँ, रिक्तता से भरा हुआ मैं
अग्रणी की अभिलाषा ने पीछे कर दिया

तालमेल ना बैठा पाया जीवन से
रीझ कर, अहंकार से स्वयं को भर लिया
अवगत कराया यथार्थ से, गिरा जो तल पे
निर्धारित मेरी दिशाओं ने दिशाविहीन कर दिया

छल रहा था भ्रम मुझे "एकमात्र मैं योग्य"
विषमताओं ने भ्रम ये दूर कर दिया
अंततः देख वास्तविकता स्वयं की
स्वयं से स्वयं को अपरिचित कर दिया

© vineetapundhir