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जिस दिन सादगी श्रृंगार हो जाएगी
जिस दिन सादगी श्रृंगार हो जाएगी
उस दिन आइने की हार हो जाएगी

शबनमी बूंदे फिर पड़ेंगी चांद पर।
निहारिका फिर से बहार हो जाएगी

ज़र्रे जर्रे में होगी चमक रौशनी की
अंधेरे के सामने खड़ी
फिर उजाले की दीवार हो जाएगी

सच होगा झूठ- झूठ ही परम सत्य
मिथ्या ही फिर सच्ची रोजगार हो जाएगी

नफ़रतें करेंगे टूट कर चाहने वाले
इश्क़ भी इतनी उस दिन बीमार हो जाएगी

करेंगे शिकायत हर रोज फिर जीने वाले
मौत ही हर एक की त्यौहार हो जाएगी
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© AkaSSH_Ydv_aqs