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उठते हैं सवाल आख़िर क्यूं...✍️✍️
© Shivani Srivastava
लोग पूछते हैं.. चिंतित हो जिसके लिए, वो तुम्हारा क्या लगता है..
वो तुम्हारा कोई 'अपना' भी तो नहीं है,दूर दूर तक पराया लगता है..
वो तो तुम्हें नहीं याद करता कभी, फिर भी तुम उसे ही याद किए जा रही हो..
ज़रूरत से ज्यादा फ़िक्र हो रही उसकी,कहीं ऐसा तो नहीं कि कुछ छिपा रही हो..
कैसे समझाऊं कि भावमात्र ही आधार है,भला इस रिश्ते को क्या नाम दूं मैं..
कोई वजह थोड़ी थी जुड़ने की, जिसे एक निश्चित समय बीतने पर अंजाम दूं मैं..
क्यूं लोग नहीं कर पाते यकीन कि किसी से जुड़ने का कारण लगाव भी हो सकता है..
बेनाम से ये भाव भी अगर बिखरते रहे तो दिल में गहरा घाव भी हो सकता है..
उससे शिकवा करूं,दुनिया से गिला करूं,या अब अपने ही दिल से नाराज़ हो जाऊं..
क्या खुश हो जायेंगे सभी,गर हाल ए दिल न लिखूं,ख़ामोश कोई गहरा राज़ हो जाऊं..
क्यूं किसी की परवाह तक करने के लिए उससे जुड़ने के लिए कोई न कोई बंधन अनिवार्य है..
क्यूं बिना किसी चाहत के बेवजह कोई दिल में उतर जाए, ये बात पूरी दुनिया को अस्वीकार्य है..
क्यूं सिर्फ़ लगाव देखकर दिल के भावों के प्रति अनुचित ही अनुमान लगाए जाते हैं..
कभी दिल से सोचकर बता दे कोई! कुछ रिश्ते बिना बंधन के भी निभाए जाते हैं..
-Shivi...✍️✍️
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