...

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हमे कोनसा सदियों तक जीना है...।
*हमे कोनसा सदियों तक जीना है*
गुजरते तुम हो साहेब,
वक्त कहां गुजरता है..
बसते कब हो तुम इस दुनियां में, रुकते कहां हो, ठहरते भी नहीं
बस यहां से गुजर रहे हो
बस राहगीर हो दुनियां के
बड़े रास्ते भी नहीं चल सके
बस पगडंडियों पे ही चलते हो
शंकरे से रास्तों पर पल भर
चल पाते हो, निकल जाते हो
कहां वक्त है तुम्हे सुकून भरा
तुम जमीं को अपना कहते हो
पर तुम बेदखल हो,
न जानें कितने मालिक गए,
जीवन बड़ा कहां है
बस थोड़ा सा बचपन
थोड़ी सी जवानी
और फिर उसी में बसी है सब
ज़िंदगी बनाने की जद्दोजहद
एक दिन रूक जाना है सपनो को...
इसी में सब कुछ करना है
हमे कोनसा सदियों तक जीना है..।।