हिन्दी अपने घर में परायी
कैसी ये विडम्बना है हिन्दी
अब अपने घर में ही परायी है।
जहाँ देखों पढ़े-लिखों के मुख़ पे
सिर्फ़ अंग्रेजी ही अंग्रेजी छायी है।
हिन्दी और अंग्रेजी दोनों महज़ भाषा है
पर ना जाने क्यों देश में हिन्दी बनी तमाशा है।
जो हिन्दी बोले...
अब अपने घर में ही परायी है।
जहाँ देखों पढ़े-लिखों के मुख़ पे
सिर्फ़ अंग्रेजी ही अंग्रेजी छायी है।
हिन्दी और अंग्रेजी दोनों महज़ भाषा है
पर ना जाने क्यों देश में हिन्दी बनी तमाशा है।
जो हिन्दी बोले...