...

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हिन्दी अपने घर में परायी
कैसी ये विडम्बना है हिन्दी
अब अपने घर में ही परायी है।

जहाँ देखों पढ़े-लिखों के मुख़ पे
सिर्फ़ अंग्रेजी ही अंग्रेजी छायी है।

हिन्दी और अंग्रेजी दोनों महज़ भाषा है
पर ना जाने क्यों देश में हिन्दी बनी तमाशा है।

जो हिन्दी बोले उसे निम्न समझते हैं देश में
अंग्रेजी संवाद देश में लगता अच्छा-ख़ासा है।

बेशक़ तुम बोलो अंग्रेजी पर हिन्दी ना त्यागो तुम
देश की मातृभाषा भूलकर पश्चिम को ना भागो तुम।

मिट जाएगी भाषा ये यूँ ही अंग्रेजी बोलते रहे अगर
हिन्दी भाषी नींद तोड़ो अंग्रेजी से जागो तुम...

© Gaurav J "वैरागी"

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