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बारिश
अबकी बारिश बड़ी गहरी थी
जो कच्चे थे, वो सारे रंग उतर गए
कुछ एक मुसाफिर का भ्रम टूटा
कुछ को बड़ा बुरा लगा सच से मिलकरके
सो हुआ यूं, की सालों बाद
कुछ बंजारे, लौट के घर गए
अबकी बारिश बड़ी गहरी थी
जो कच्चे थे, वो सारे रंग उतर गए
जिनके भरोसे चले थे जीवन के सफर में
जिनपर एतबार भी खुदसे ज्यादा था
उन्होंने समान समेटा और चुपके से गुजर गए
अबकी बारिश बड़ी गहरी थी
जो कच्चे थे, वो सारे रंग उतर गए
जब बात चली कहां तक चलना है
जब बात चली कहां पे मिलना है
फिर जो बहादुर बने फिरते थे, वो भी डर गए
अबकी बारिश बड़ी गहरी थी
जो कच्चे थे, वो सारे रंग उतर गए

© वियोगी (the writer)