गुलाब
गुलाब के पत्तों पे पड़ी,
वो सालों पुरानी धूल थी,
या थी यादों कि नमी,
वक्त की परत का असर था,
या क़ब्र में समा रही एक ज़िंदगी!
जुदा इस फूल की दास्ताँ ,
हमने उस पेड़ से सुनी,
जिसकी डालियों का सहारा था,
पर रही क़िस्मत की कमी॥
© Five Fifteen
वो सालों पुरानी धूल थी,
या थी यादों कि नमी,
वक्त की परत का असर था,
या क़ब्र में समा रही एक ज़िंदगी!
जुदा इस फूल की दास्ताँ ,
हमने उस पेड़ से सुनी,
जिसकी डालियों का सहारा था,
पर रही क़िस्मत की कमी॥
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