...

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"इश्क़ विश्क प्यार व्यार"
इश्क़ विश्क प्यार व्यार,बन बैठा व्यापार..!
लालच में पड़े हैं देखो,लुभावने किरदार..!

सूरत को चाहते हैं,सीरत के अनाचार..!
दौलत के ढेर पसंद,स्वार्थ जिनका आधार..!

कोई बना शिकारी इसमें,कोई बना शिकार..!
बुद्धि दिखाते तीव्र अपनी,मन में मैले विचार..!

तरह तरह के लोग,तरह तरह की बातें..!
इश्क़ मोहब्बत के नाम पे,कैसे करे ऐतबार..!

कठघरे में नज़र आती मोहब्बत,उम्मीदों के गुनाहगार..!
उजाले की दुनिया अस्त होती,नज़र आता केवल अन्धकार..!

ख़्वाबों की दुनिया बनाते,करते ख़्वाहिशों का संहार..!
घर परिवार उजाड़ते अपना,सबके अपने अपने अहँकार..!
© SHIVA KANT