इंतज़ार
इंतज़ार का मज़ा ही कुछ निराला था
सारी भूख आँखों में उतर आयी थी
हलक से उतरा न कोई निवाला था
बेजान से दरवाज़े पे टकटकी लगाए रखते थे
न राते सोया करती न दिन जगना जानते
बस कसक सी लगी थी कोई आनेवाला था
© khush rang rina
सारी भूख आँखों में उतर आयी थी
हलक से उतरा न कोई निवाला था
बेजान से दरवाज़े पे टकटकी लगाए रखते थे
न राते सोया करती न दिन जगना जानते
बस कसक सी लगी थी कोई आनेवाला था
© khush rang rina