...

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स्मरण रहे...!
जो लोग मेरा बुरा करने के इच्छुक है,
I give them full freedom to do so
क्योंकि...
वे कुछ कर सकते नही!
क्योंकि...
मैं तो कुछ भी नहीं,
आकाश का भला तुम क्या ही बिगाड़ लोगे...
कर महज़ इतना सकते है,
जिस ज़मी के भौतिक टुकड़े को
'मैं' रूप मे इस आकाश ने धारण किया है
उसके जीवन को ज़रा मुश्किल भर और कर सकते है।
और भला तुम क्या ही कर लोगे।
इसीलिए...
जिसे तुम छेड़ने की सोचते हो
उसे कीचड़ से कमल चुन्ना आता है।
कांटों से गुलाब को पाना आता है।
पत्थर मे उसे फूल खिलाना आता है।
मुझ पर तुम्हारे सारे वार मैं झेल लूंगी,
यूं भी तुम जो भी करोगे,
वह मेरे अच्छा ही कर जाएंगे।
चाहे तुम जो करो...
अपने कर्म से महज़,
अपने कर्म के बंधन ही बांधोगे,
जिस तंत्र मंत्र की भी तुम सोचते हो,
वह शिव की शिव से है,
शिव से जन्मी शिव मे ही समाती है।
शिव का भला तुम क्या ही बिगाड़ लोगे
वैश्णवी अस्त्र भी ज्यों विष्णु के लिए पुष्पमाला हो जाती है,
तुम अपने नाजायज़ चतुराई का कोई भी हथियार उठालो,
वह मेरे लिए नीलकंठ अपराजिता हो जायेंगे!
हरसिंगार हो जाएंगी।
किसी सत-पथ के पथिक पर
तुम जितने भी वान चलाओगे
वह उसके हित मे ही काम कर जाएंगे।

पवित्रता ही उसकी दिव्यता है,
और यहीं दिव्यता उसकी शक्ति!!

सो जो तुम्हारी इच्छा मे हो
वह करने को तुम मुक्त हो,
मैं रोक सकती होंगी
तब भी तुम्हे रोकूंगी नही।

किन्तु स्मरण रहे...!
नन्ही सी ज़मी का टुकड़ा मालुम होती वो आकाशी,
तुम्हारे आखों का धोखा भर,
उसका दिया भर माटी का है,
महज़ जलती लौ नहीं!
आग है वो!

स्मरण रहे...!

रोशनी दे सकती है,
मगर...
ख़ाक करने को भी सक्षम है वो,
ज्योति है वो,
ज्योति ही रहने दो उसे।
ज्वाला बनने पर मजबूर न करो।
तुम अपने अंधकार मे खुश हो
तो कोई बात नहीं,
दूर ही रहो रौशनी से...
किंतू अकारण मेरे किसी प्रियजन को,
अथवा निर्दोष जन को यदी छेड़ने की चेष्ठा की..
तुम अपने कर्मों की गणना!
और वक्त का हिसाब किताब ज़रा शुरू कर देना!

जो जितना सीधा, सहज सरल मालुम होता है
उसके लचीलेपन की सीमा भी उतनी ही होती है,
के वक्त की मांग और ज़रूरत पड़ने पर
वह ज़रूरत से अधीक टेढ़ा भी हो सकता है।

स्मरण रहे!

जहां सत्य, वहीं शिव है!!
और जहां शिव वहीं शक्ति भी!!
यदि तुमने सत्य को छेड़ा,
तो स्मरण रहे!
शिव ऐसा तांडव करेगा,
की शक्ति
के वार से तुम बच न पाओगे।
और जान भी न पाओगे,
धोखे के अर्श से हकीकत के फर्श पर
तुम कब!क्यों!कैसे! आ गए।
इसीलिए बैहतर होगा,
तुम अपने तन, मन, धन
और श्रम की छमता का प्रयोग
किसी के हित के लिए करो,
यदि न कर सको
तो कम से कम
किसी के अहित से भी बचो।

क्योंकि जिस श्रम की छमता से
तुम तन, मन, धन की शक्ति को अर्जित करते हो,
और उस पर घमंड का ताज धरे फिरते हो।
उस श्रम की छमता को निर्मित करने की,
आज तक भी
हैसियत नहीं किसी मनुष्य की...
विज्ञान भी नहीं कह सकता
कैसे रात आप सोते हो,
सुबह उठकर कैसे पुनः कार्य करने की छमता को उपल्ब्ध हो जाते हो,
कौन भर जाता है रात तुम्हारे भीतर ऊर्जा?
सो जो धन, पद, यश..
और तन, मन कि शक्ति को पाने पर व्यक्ति को लगता है,
यह सब मैंने किया!
अच्छा....
अह्हा...🤔
सब पा लेने पर
सब मैंने किया और,
जब पाया सब गवाया,
तो सब उसने😑🙄।

स्मरण रहे....!

बहुत लोग है
जो प्रातः उठना चाहते है,
कर्म करना चाहते है!
नहीं कर पाते,
बुद्धि चलाना चाहते है,
मगर उनकी बस की नहीं...
स्मरण रहे...
"फूल ऐसे भी है जो ठिक से अभी खिले ही नहीं,
जिए भी नहीं...
न फिज़ा उन्हें खा पाई, न
न ज़िंदगी ही उन्हें रास आई।"

सो स्मरण रहे!

अहो भाग्य करो
के तुम फिलहाल उनमें से नही।


विज्ञान भी खोज न पाया है जिसे,
उस ऊर्जा के स्रोत को,
और उसके मेहर की वजह को!
सो जब तक वह अनजानी वजह तुम्हारे साथ है,
श्रम की छमता तुमसे बहती है,
बुद्धि से हो, या बल से...
अनुग्रहित रहो, आभारी रहो।
हो सके तो #प्रेम से भरो,
वर्ना खाली रहो!
उस श्रम-शक्ति का प्रयोग उचित कर्म के लिए करो,
वरना जिसने सहज दिया है,
उसे सहजता से लेना भी आता है ।

स्मरण रहे!!
© D💚L

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#shiva #shakti #self