...

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हम भी हैं सफर पर....
" सुबह हुई सूर्य देव की जय ...
मेरे इस सफर को सफल करना देव"
यूं बोला आर्मी कवर वाला सूटकेस
निकाल के साफ किया था अंकल ने जिसे
बेटे के पास जाने को, ना था धूल का ट्रेस...

मूंदी आंख से बोला, नज़दीक पड़ा ब्लू बैग
चुप बैठो सोने दो, ऐसी कैसी कुटेव
सुबह की नींद का हमे भी लुत्फ उठाने दो
आफ्टर ऑल, हम भी हैं सफर पे...

वाह क्या बोगी है... बोला पास पड़ा थैला
ए सी, टेबल, कुशन, फुट रेस्ट सब है
ऐसा सफर किया ही मैंने कब है
मैं तो मंडी ही जाता था आंटी के साथ
या दे देते मुझे कभी नौकर के हाथ
मैंने देखी रिक्शा और तरकारी
किस्मत ही बदल गई मेरी इस बारी

हांजी थैला अंकल, आया हूं मैं भी सफर में
पेंसिल पेन टिफिन किताब कॉपी कवर में
स्कूल ट्यूशन टेबल... यही थी मेरी दुनिया
कितने और बैग् , ढेर सारे लोग, नए शहर
बहोत कुछ दिख रहा है यहां...

"एक्सक्यूज मी" वो ब्लू अटैची बोली
लाल रोली उसके थी हैंडल पर,
नई नवेली अपनी मालकिन सी
शरमाई सी - कितनी दूर है मुम्बई
मेरे वो हैं वहां, शादी हुई दीदी के साथ मेरी भी
हम भी हैं सफर पर....

जब निकलें हम सफर में
निकलती हैं हमारे साथ
कुछ चीज़ें कुछ भावनाएं भी
उम्मीदें, ख्वाहिशें, प्रेम, जुदाई भी
गुस्से गिले जलन दुख अपनी पराई भी...
















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