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तुम्हारा,खुद खोता रहा
इक तिरी इश्क़ की राह
मैं टूट यूँ संजोता रहा
न हंस सका जग में हक़ से
हक़ से न जग में रोता रहा
पाया क्या, क्या ख़बर
क्या फर्क,जो मैं खोता रहा
दिले मर्ज को, अब उबरना नहीं
शौक से हर दर्द मैं, सर ढोता रहा
चाहत बड़ी, मयस्सर कहां
न हुआ तुम्हारा,खुद खोता रहा
कि तकदीर ने भी
लतीफे लिख दिये ज़िन्दगी
न पाया तुम्हें
मन न किसी का होता रहा
© राइटर.Mr Malik Ji.....✍
मैं टूट यूँ संजोता रहा
न हंस सका जग में हक़ से
हक़ से न जग में रोता रहा
पाया क्या, क्या ख़बर
क्या फर्क,जो मैं खोता रहा
दिले मर्ज को, अब उबरना नहीं
शौक से हर दर्द मैं, सर ढोता रहा
चाहत बड़ी, मयस्सर कहां
न हुआ तुम्हारा,खुद खोता रहा
कि तकदीर ने भी
लतीफे लिख दिये ज़िन्दगी
न पाया तुम्हें
मन न किसी का होता रहा
© राइटर.Mr Malik Ji.....✍
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