...

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तनहाई
कैसे कहूं,क्या कहूं,की अब
कोई बात समझ नहीं आता,

तन्हा मेरी सफ़र हैं, अश्कों
का अब सहारा,कुछ दूर चले

मुसाफिर फिर कर गए किनारा,
हो सके तो छोड़ देना दिल्लगी,

मुझे तो इल्म हैं तनहाईयों का,
तनहा मेरा सफर हैं,अश्कों का

अब सहारा,यादें मेरी अब साथ,
हैं,एक सिर्फ जीने का एक सहारा,

ख्वाबों की दीपमाला बुझ जाती
हैं सुबह तक,अश्कों की बहती धारा

रुकती नहीं सुबह तक,फ़िक्र ए
तमाम हैं,पर होंठों पे जिक्र नहीं हैं,

ताल्लुक कोई नहीं हैं,पर यादें गई
नहीं हैं,