...

17 views

बाज़ार-ए-हुस्न...
तवाइफ़ का दीदार, बाज़ार-ए-हुस्न के दरबार में।
एक जुलूस उभरता है रोज, इस कतार में।

आते हैं बेबस होकर अक्सर वो यहां,
फरेब, धोखा, बेवफा दिखता है जिसे प्यार में।

चूमते ही लबों को मदहोश हो जाते है वो,
होश खो जाता है उतरते लिबास में।

बे-लिबास लिपटते है अक्सर वो यहां,
फरेब, धोखा, बेवफा दिखता है जिसे प्यार में।

इश्क की महफिल की यादें मिटाते है वो,
जिस्म की महफिल यहां सजाते है वो।

जिस्म को इश्क कहते है अक्सर वो यहां,
फरेब, धोखा, बेवफा दिखता है जिसे प्यार में।

“अपने हुस्न पे ज़रा गौर फरमाइए, ऐसे हुस्न अक्सर बाज़ार-ए-हुस्न में मिलते है।।”

© Rahul Raghav