...

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डर सा लगता है
डर सा लगता है , मां बाप के
सपनों को जीत पाऊंगा या नहीं
डर सा लगता है , जिससे लड़ रहा हूं मैं
फिर उससे मिल पाऊंगा या नहीं।
डर सा लगता है, जिसे अपना कह रहा हूं मैं
उसके लिए मैं मर मिट पाऊंगा या नहीं
बाल उम्र थी अंधकार डर था
किशोरावस्था में अनेक डर है।
डर है खुद में गुमशुदगी की
डर है दुसरो के खामोशी की
डर है जीत के बदले कुर्बान हर वो मित्र और प्रीत की
और इस डर से लड़ना ही एकमात्र विकल्प है।

© Ashish Raj