एक लड़की
वह मासूम सी नाजुक बच्ची,
एक आंगन की कली थी वो।
मां बाप की आंखों का तारा,
अरमानों से पाली थी वो।
जिसकी मुस्कान से पत्थर भी,
मोम सा पिघल जाता था।
उसके जीवन के केवल,
पांच बसंत ही गुजरे थे।
फिर भी उस पर हुआ अन्याय,
ये कैसे विधि के लिखे थे।
पांच साल की बच्ची पे,
कैसा ये अत्याचार हुआ।
कपड़ों पर इल्जाम लगाते हैं,
उनसे यह समझाऊं मैं।
आखिर पांच साल की बच्ची को,
साड़ी कैसे पहनाऊं मैं।
अगर अभी हम ना सुधरे तो,
भगवान भी बेटी देने से घबराएगा।