...

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लक्ष्य...
अमर तू चल, तेरी मंज़िल है जहाँ,
तेरे पदचिन्ह ही बतलाएंगे,
तू पहुँचा है कहाँ।
काँटों की परवाह न कर,
बिन काँटों के फूल खिलते हैं कहाँ।
जब परिवर्तन की गुंजाइश न हो,
हम खुद को ढालते हैं वहाँ।
अहंकार, लोभ आदि का कर त्याग तू,
यही कुर्बानियाँ हर एक से मांगता है जहाँ।
खतरे बढ़ेंगे जब मंज़िल करीब होगी,
हर मंज़िल अपने विजयी को परखती है यहाँ।

© Rohit Sharma(Joker)

@Rohi6527 @verma_sahab @cmcbdoc