...

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मुहोब्बत भी और मुसिबत भी ...
जितना सोचोगे उतनी ही गहेरी होती जाती है,
मुहोब्बत भी और मुसिबत भी,
किसी मे भी डुब कर देखो मगर साथ ही चलती है,
परछाइ भी और तन्हाइ भी,
मिलती नही मंजिल और आदते भी भुलाती नही,
ख्वाब की भी शराब की भी,
ना वादियो मे नजर आया ना ही फितरत मे इन्सानो की,
कोहरा भी और मोहरा भी,
हाल पुछने मेरे भी आये थे कुछ लोग,
नया साल भी बिता हाल भी ।