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मजबूरी
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
आज़मा रहा है जमाना
पग पग पर इम्तिहान भी जरूरी है,
हौसलों से उड़ान भरी
पंख होने क्या ज़रुरी है;
हम हारते भी कहा ऐ जिन्दगी
हम तो रुक जाते हैं,
वक्त के साथ एक ठहराव जी ज़रुरी है ।।
© वैदेही
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
आज़मा रहा है जमाना
पग पग पर इम्तिहान भी जरूरी है,
हौसलों से उड़ान भरी
पंख होने क्या ज़रुरी है;
हम हारते भी कहा ऐ जिन्दगी
हम तो रुक जाते हैं,
वक्त के साथ एक ठहराव जी ज़रुरी है ।।
© वैदेही
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